रायपुर: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा ने भी किसान परेड का समर्थन किया। कोरबा, सूरजपुर व सरगुजा जिलों समेत प्रदेश में कई जगहों पर किसान गणतंत्र परेड निकालकर सरकार की नीतियों को गलत ठहराया गया।किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि देशव्यापी किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए सरकार द्वारा दिल्ली में हिंसा प्रायोजित की गई थी। देश के किसान इसका माकूल जवाब देंगे और एक फरवरी को संसद पर जबरदस्त प्रदर्शन करेंगे। जिसमें छत्तीसगढ़ से सैकड़ों किसान हिस्सा लेंगे।संगठनों का कहना है कि ये परेड मोदी सरकार द्वारा बनाए गए चार कारपोरेटे परस्त श्रम संहिता और तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आयोजित किये गए थे। इन परेडों के जरिये छत्तीसगढ़ किसान सभा द्वारा केंद्र सरकार से कारपोरेटे परस्त और किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस लेने और फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाने की मांग की गई।किसान सभा और छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े अन्य घटक संगठनों के सैकड़ों किसानों ने भी दिल्ली में किसान गणतंत्र परेड में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व भी किया। छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि दिल्ली में किसान गणतंत्र परेड में हुई हिंसा के लिए पुलिस और केंद्र सरकार जिम्मेदार है।उन्होंने बताया कि पलवल बार्डर के जत्थे को बदरपुर तक जाने की सहमति बनी थी, लेकिन इसे सीकरी के पास ही रोक देने से किसानों को बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ना पड़ा। फिर पुलिस द्वारा की गई हिंसा का सैकड़ों लोगों को शिकार बनना पड़ा।किसान सभा नेताओं ने कहा कि इस देश का किसान अपने अनुभव से जानता है कि निजी मंडियों के अस्तित्व में आने के बाद और खाद्यान्ना व्यापार को विश्व बाजार के साथ जोड़ने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य की पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी। इसलिए इस देश का किसान अपनी अंतिम सांस तक अवाम के साथ मिलकर खेती-किसानी को बर्बाद करने वाले इन कारपोरेट परस्त कानूनों के खिलाफ लड़ने को तैयार है। इन कानूनों को वापस लेने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने के अलावा इस सरकार के पास और कोई रास्ता बचा नहीं है।संजय पराते का कहना है कि हमारे देश के किसान न केवल अपने जीवन-अस्तित्व और खेती-किसानी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, बल्कि वे देश की खाद्यान्ना सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा संप्रभुता की रक्षा के लिए भी लड़ रहे हैं। उनका संघर्ष उस समूची अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण के खिलाफ भी है, जो नागरिकों के अधिकारों और उनकी आजीविका को तबाह कर देगा।